Thursday, October 16, 2008

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के मामले में भारतीय कंपनियां अब ज्यादा जागरूक हो गई हैं। धरती को ग्रीन हाउस गैसों के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए यहां की करीब 21 फीसदी कंपनियों ने प्रयास शुरू कर दिए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 55-60 फीसदी के औसत को देखते हुए यह बहुत कम है, लेकिन 2 साल पहले इस मामले में भारतीय कंपनियों का अनुपात सिर्फ 10 फीसदी होने की तुलना में यह बहुत अच्छी उपलब्धि है। वाणिज्य एवं उद्योग चैम्बर एसोचैम के सर्वेक्षण में यह जानकारी सामने आई है।
एसोचैम के इस सर्वेक्षण में शीर्ष 180 कंपनियों के 240 कर्मचारियों के विचार जाने गए। सर्वेक्षण के अनुसार, 21 फीसदी कंपनियों ने अमेरिका, यूरोपीय संघ और आसियान जैसे जलवायु परिवर्तन से प्रभावित प्रमुख क्षेत्रों में इस समस्या से निपटने में सहयोग करने के लिए विकसित देशों के साथ साझेदारी की है। भारतीय कंपनियों द्वारा किए जा रहे इस तरह के प्रयासों को उक्त क्षेत्रों की 60 फीसदी से ज्यादा कंपनियों का पूरा समर्थन मिल रहा है। सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के घातक प्रभावों से पर्यावरण को बचाने के लिए उक्त देशों में चल रहे पीपीपी मॉडल सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन भारत में कॉरपोरेट जगत और सरकार के बीच साझेदारी अभी सही गति नहीं पकड़ पाई है।
सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी करते हुए एसोचैम के अध्यक्ष सज्जन जिंदल ने कहा, 'विभिन्न सरकारी और निजी क्षेत्रों के 7 से 10 फीसदी कर्मचारियों ने इस मसले को गंभीरता से लिया है और वे उद्योग एवं समाज के साथ मिलकर इसके लिए काम भी करना चाहते हैं। सरकार, कॉरपोरेट कंपनियों एवं एनजीओ ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिन्ग से जुड़े अभियान मेट्रो शहरों, छोटे शहरों एवं गांवों तक में शुरू किए हैं।' सर्वेक्षण में यह चेतावनी भी दी गई है कि अभी 79 फीसदी घरेलू कंपनियां अपने विस्तार योजनाओं और प्रसार को पहली प्राथमिकता दे रही हैं और जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिन्ग की समस्या उनकी प्राथमिकता में दूसरे स्थान पर आती है। इस तरह की प्रवृत्ति कंपनियों के लिए नुकसानदेह हो सकती है और भविष्य में उन्हें इस पर ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ सकती है।
जिंदल ने भारतीय कंपनियों से अनुरोध किया कि वे खुद आगे आते हुए अपनी सालाना आमदनी का एक निश्चित हिस्सा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने के लिए खर्च करें। सर्वेक्षण में शामिल 70 फीसदी लोगों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से कृषि, वानिकी, यातायात और ऊर्जा क्षेत्र की बढ़त को चोट पहुंच सकती है। 75 फीसदी कंपनियों ने प्राकृतिक गैस और अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने की मांग की। सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश कंपनियां चाहती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए समन्वित अभियान चलाया जाए। अधिकांश कंपनियां जलवायु परिवर्तन के महत्व को समझ चुकी हैं और इसके दुष्प्रभावों को समझने के लिए सहकारी या समन्वित प्रयास में शामिल होने की इच्छुक हैं। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए कई कंपनियों ने रणनीति तैयार करनी भी शुरू कर दी है। कई मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों में बड़े पैमाने पर पौधे लगाए जा रहे हैं और औद्योगिक कचरे के निपटारे की ऐसी व्यवस्था की जा रही है जिससे पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को कम से कम नुकसान हो। सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोगों का यह भी कहना था कि उक्त सभी प्रयासों के साथ ही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को तेजी से कम करने वाले नए एवं स्वच्छ प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिए। गौरतलब है कि कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, जल वाष्प, ओजोन जैसी गैसों के उत्सर्जन से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।
प्रीती द्विवेदी

5 comments:

Amit K Sagar said...

पर्यावरण पर चिंतन; बेहद अच्छा लगा. अपने ब्लॉग के फॉण्ट सही दिखें, इसलिए कुछ तकनीकी कमियों को दूर करें कृपया.
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शुभकामनाएं.

कृषि समाधान said...

I was yeterday that we celebrated World Food Day-2008 adn today I read your wonderful post. Well done. You have done lot of research.
How come you are interested in Agricutlture?
Please do visit to kvkrewa.blogspot.com to read more on agriculture.
Regards
Dr. Chandrajiit Singh
chandar30@gmail.com
mazedarindianfoodconcept.blogspot.com
indianfoodconcept.blogspot.com

Unknown said...

achha prayas hai......in my language .......... zara Hatke shocha.........

प्रदीप मानोरिया said...

आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है // आपको मेरे ब्लॉग पर काव्य रस के आनंद हेतु आमंत्रण है

"MIRACLE" said...

achchi soch.